History Today: When the world lost Kalpana Chawla in the Columbia disaster
इतिहास में आज का दिन: जब दुनिया ने कल्पना चावला को कोलंबिया आपदा में खो दिया
1 फरवरी 2003 का दिन इतिहास में एक दुखद घटना के रूप में दर्ज है। इस दिन, भारत की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला सहित सात अंतरिक्ष यात्रियों की मृत्यु स्पेस शटल कोलंबिया (STS-107) दुर्घटना में हो गई थी।

Kalpana Chawla: कल्पना चावला और छह अन्य अंतरिक्ष यात्रियों का निधन
1 फरवरी 2003 को, स्पेस शटल कोलंबिया पृथ्वी के वायुमंडल में पुनः प्रवेश करते समय टूटकर बिखर गया, जिससे यान में सवार सभी सात अंतरिक्ष यात्रियों की दुखद मृत्यु हो गई। इनमें भारतीय-अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला भी शामिल थीं।


Kalpana Chawla: एक प्रेरणादायक सफर
कल्पना चावला का जन्म 17 मार्च 1962 को हरियाणा के करनाल में हुआ था। विज्ञान और अंतरिक्ष के प्रति उनके जुनून ने उन्हें अमेरिका तक पहुंचाया, जहां उन्होंने एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में उच्च शिक्षा प्राप्त की। 1997 में, वे पहली बार अंतरिक्ष में गईं और भारत की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री बनने का गौरव हासिल किया।
कोलंबिया मिशन और दुखद अंत
16 जनवरी 2003 को कल्पना चावला और उनके छह साथी वैज्ञानिक स्पेस शटल कोलंबिया STS-107 से अंतरिक्ष के लिए रवाना हुए। यह मिशन वैज्ञानिक अनुसंधानों के लिए था। 16 दिनों के सफल अंतरिक्ष प्रवास के बाद, 1 फरवरी 2003 को वापसी के दौरान, पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते समय यान में तकनीकी खराबी आ गई। टेक्सास के आकाश में कोलंबिया शटल टूटकर बिखर गया और इस हादसे में सभी सातों अंतरिक्ष यात्रियों की दर्दनाक मृत्यु हो गई।
एक अमर प्रेरणा
कल्पना चावला की जीवन यात्रा और उनका योगदान युवा पीढ़ी के लिए सदैव प्रेरणादायक रहेगा। उनका सपना, “सितारों से आगे जाने का”, आज भी अनगिनत युवाओं को विज्ञान और अंतरिक्ष की दुनिया में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।
श्रद्धांजलि!
आज के दिन हम कल्पना चावला और उनके साथियों को नमन करते हैं, जिन्होंने विज्ञान और मानवता की सेवा में अपना जीवन बलिदान कर दिया।

यह संशोधन पूरे अमेरिका में गुलामी को समाप्त करने के लिए लाया गया था, जिससे यह संवैधानिक रूप से सुनिश्चित हो सके कि गुलामी और जबरन श्रम (सिवाय अपराध के दंड स्वरूप) अब अस्तित्व में नहीं रहेंगे।
यह निर्णय राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन द्वारा 1 जनवरी 1863 को जारी की गई “स्वतंत्रता उद्घोषणा” (Emancipation Proclamation) के बाद आया। उस उद्घोषणा ने संघीय नियंत्रण वाले क्षेत्रों में गुलामों को स्वतंत्र घोषित किया, लेकिन इसने पूरे देश में गुलामी को पूरी तरह समाप्त नहीं किया।
31 जनवरी 1865 को, अमेरिकी प्रतिनिधि सभा (House of Representatives) ने 13वें संशोधन के पक्ष में मतदान किया। हालाँकि, इस पर राष्ट्रपति की औपचारिक हस्ताक्षर की आवश्यकता नहीं थी, फिर भी लिंकन ने इस दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए, जो उनके नैतिक समर्थन का प्रतीक था। इसके बाद इसे राज्यों के अनुमोदन (ratification) के लिए भेजा गया।
